एक बादशाह का ग़ुलाम घोड़े पर सवार मग़रूर के आलम में चला आरहा था, सामने एक बुज़ुर्ग आ गए...। उन्होंने उस मग़रूर ग़ुलाम से कहा: ये अकड़ ख़ानी तो अच्छी नहीं...। ग़ुलाम ने और ज़्यादा अकड़ से कहा: मैं फ़ुलां बादशाह का ग़ुलाम हूँ, और वो बादशाह मुझ पर बहोत भरोसा करता है... जब वो सोता है तो मैं उसकी हिफ़ाज़त करता हूँ, जब उसे भूख लगती है तो मैं उसे खाना देता हूँ, कोई हुक्म देता है तो फ़ौरन बजा लाता हूँ...।
ये सारे अल्फ़ाज़ सुनकर बुज़ुर्ग ने पूछा और जब तुमसे कोई ग़लती हो जाती है तब? ग़ुलाम ने जवाब दिया: इस सूरत में मुझे कौड़े लगते हैं...। इस पर बुज़ुर्ग बोले: तब तुमसे ज़्यादा मुझे अकड़ना चाहिए...। ग़ुलाम ने हैरान होकर पूछा, वो कैसे...?
बुज़ुर्ग बोले मैं ऐसे बादशाह का ग़ुलाम हूँ कि जब मैं भूखा होता हूँ तो वो मुझे खिलाता है...। जब मैं बीमार होता हूँ वो मुझे शिफ़ा देता है...। जब मैं सोता हूँ तो वह हर तरह मेरी हिफ़ाज़त करता है...। जब मुझसे ग़लती हो जाए और मैं उससे माफ़ी मांग लूं तो बगैर कोई सज़ा दिये अपनी रहमत-ओ-मेहरबानी से मुझे बख़्श देता है...। ये सुनकर उस मग़रूर ग़ुलाम ने कहा तब तो मुझे भी उसका ग़ुलाम बना दें...। बुज़ुर्ग फ़ौरन बोले बस तो फिर अल्लाह का हो जा, ऐसा मालिक तुम्हें कहीं नहीं मिलेगा...।
ये सारे अल्फ़ाज़ सुनकर बुज़ुर्ग ने पूछा और जब तुमसे कोई ग़लती हो जाती है तब? ग़ुलाम ने जवाब दिया: इस सूरत में मुझे कौड़े लगते हैं...। इस पर बुज़ुर्ग बोले: तब तुमसे ज़्यादा मुझे अकड़ना चाहिए...। ग़ुलाम ने हैरान होकर पूछा, वो कैसे...?
बुज़ुर्ग बोले मैं ऐसे बादशाह का ग़ुलाम हूँ कि जब मैं भूखा होता हूँ तो वो मुझे खिलाता है...। जब मैं बीमार होता हूँ वो मुझे शिफ़ा देता है...। जब मैं सोता हूँ तो वह हर तरह मेरी हिफ़ाज़त करता है...। जब मुझसे ग़लती हो जाए और मैं उससे माफ़ी मांग लूं तो बगैर कोई सज़ा दिये अपनी रहमत-ओ-मेहरबानी से मुझे बख़्श देता है...। ये सुनकर उस मग़रूर ग़ुलाम ने कहा तब तो मुझे भी उसका ग़ुलाम बना दें...। बुज़ुर्ग फ़ौरन बोले बस तो फिर अल्लाह का हो जा, ऐसा मालिक तुम्हें कहीं नहीं मिलेगा...।
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