हज़रत बिलाल हब्शी रज़ियल्लाहु अन्हू को जब जलते हुए कोयलों पर लिटा कर कोड़े मारे जा रहे थे तब रास्ते से गुज़रते हुए किसी शख़्स ने उनसे कहा कि:
"बिलाल बड़ी अजीब कहानी है, तुम कोयलों पर लेटे हो, वह कोड़े मार रहा है और तुम मुस्कुरा रहे हो"
तो हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हू ने हंस कर फ़रमाया:
"जब तुम बाज़ार जाते हो और कोई मिट्टी का बर्तन भी ख़रीदते हो तो उसको भी ठोक-बजा के देखते हो कि इसकी आवाज़ तो ठीक है? कहीं कच्चा तो नहीं है..
बस मेरा मालिक(अल्लाह) बिलाल को ख़रीद रहा है, देख रहा है कहीं बिलाल कच्चा तो नहीं है.. मैं कहता हूँ ऐ मालिक ख़रीद ले बिलाल को, चमड़ी उधड़ भी जायेगी तब भी हक़-हक़ की आवाज़ ख़त्म नहीं होगी" (सुब्हान'अल्लाह)
इस शेर से कुछ मामला समझ आएगा
ज़ख्म पे ज़ख्म खा के जी..
ख़ून-ए-जिगर के घूँट पी..
आह न कर लबों को सी..
यह इश्क़ है दिल्लगी नहीं..
इसे पढ़ कर सुब्हान'अल्लाह कहना बहुत आसान है लेकिन इस रास्ते पर चलना बहुत मुश्किल है मेरे भाइयों...
जो लोग यह कहते हैं कि इस दौर में शरीअत पर चलना बहुत मुश्किल है वो लोग हज़रत बिलाल और बाक़ी सहाबा की क़ुर्बानियों को देखें और फैसला करें कि आज दीन पर चलना मुश्किल है या उस दौर में मुश्किल था, हम तो सारी सहूलतें मिलने के बाद भी मस्जिद जाने की तकलीफ़ नहीं उठा सकते तो जन्नत में जाने की उम्मीद कैसे लगा सकते हैं...
सहाबा इकराम को देखो कि वो कितनी मुश्किलों से गुज़रे हैं, उनके रास्ते में जंग-ए-बदर भी है, जंग-ए-ओहद भी है, जंग-ए-हुनैन भी है और जंग-ए-कर्बला भी है.. तब जा कर जन्नत मिली और हम सोचते हैं बस मुँह उठा कर चले जायेंगे जन्नत में..
आज हम इकठ्ठे हो कर किसी दीनी महफ़िल में नारा लगा कर समझते हैं कि हमने दीन का हक़ अदा कर दिया...?
नहीं मेरे भाइयों.. हमें समझने की ज़रूरत है कि दीन हमसे क्या मुतालबा कर रहा है...
नमाज़ जो कि अल्लाह को इबादतों में सबसे ज़्यादा पसंदीदा है इसको ही ले लो
हुज़ूर पाक मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि:
"मेरी आँखों की ठंडक नमाज़ है"
सहाबा फ़रमाते हैं कि:
"हम मोमिन और काफ़िर के बीच फ़र्क़ ही नमाज़ से समझते थे, जो नमाज़ नहीं पढ़ता था हम समझते थे कि मोमिन नहीं है तभी नमाज़ नहीं पढ़ता, मोमिन होता तो ज़रूर पढ़ता"
इमाम-ए-आज़म का फ़तवा है कि:
"जो नमाज़ न पढ़े उसे क़ैद कर दो, अगर तौबा करता है और नमाज़ पढ़ना शुरू कर देता है तो छोड़ दो"
शेख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी(ग़ौस-ए-आज़म) रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं कि:
"बे-नमाज़ी को मुसलमानों के क़ब्रिस्तान में दफ़न न करो"
हज़रत सुल्तान-ए-बाहू फ़रमाते हैं कि:
"बे-नमाज़ी से खंज़ीर(सूअर) भी पनाह मांगता है"
हज़रत शेख़ सादी ने फ़रमाया कि:
बे-नमाज़ी को क़र्ज़ मत दो क्योंकि जो अल्लाह का क़र्ज़(नमाज़) अदा नहीं करता वह तुम्हारा क़र्ज़ क्या अदा करेगा"
रसूल पाक के चाहने वाले,
इमाम-ए-आज़म के मानने वाले,
ग़ौस-ए-आज़म की ग्यारहवीं की नियाज़ करने वाले ज़रा अपने दिलों में झांकें कि क्या वह अल्लाह और रसूल का हक़ अदा कर रहे हैं और नमाज़ तो ऐसी इबादत है कि अगर सच्चे दिल से इसे थाम लिया तो नमाज़ बाक़ी गुनाहों से भी बचा ले जायेगी और दीगर नेकियों की तरफ़ भी मुतवज्जो करेगी और क़ब्र में भी साथ देगी और रोज़-ए-महशर में भी..
इसलिए मेरे भाइयों नमाज़ क़ायम करो ताकि जब हम अपने रब के पास हाज़िर हों तो मुँह दिखाने लायक़ तो हों...
अल्लाह हम सबको नमाज़ पढ़ने और दीगर नेक आमाल करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाये...
नोट:-
इस मैसेज को बे-नमाज़ियों को तो सेंड करो ही साथ ही नमाज़ियों को भी सेंड करो ताकि उनकी फ्रेंड लिस्ट में जो बे-नमाज़ी हों उन तक भी यह मैसेज पहुँच जाये
"बिलाल बड़ी अजीब कहानी है, तुम कोयलों पर लेटे हो, वह कोड़े मार रहा है और तुम मुस्कुरा रहे हो"
तो हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हू ने हंस कर फ़रमाया:
"जब तुम बाज़ार जाते हो और कोई मिट्टी का बर्तन भी ख़रीदते हो तो उसको भी ठोक-बजा के देखते हो कि इसकी आवाज़ तो ठीक है? कहीं कच्चा तो नहीं है..
बस मेरा मालिक(अल्लाह) बिलाल को ख़रीद रहा है, देख रहा है कहीं बिलाल कच्चा तो नहीं है.. मैं कहता हूँ ऐ मालिक ख़रीद ले बिलाल को, चमड़ी उधड़ भी जायेगी तब भी हक़-हक़ की आवाज़ ख़त्म नहीं होगी" (सुब्हान'अल्लाह)
इस शेर से कुछ मामला समझ आएगा
ज़ख्म पे ज़ख्म खा के जी..
ख़ून-ए-जिगर के घूँट पी..
आह न कर लबों को सी..
यह इश्क़ है दिल्लगी नहीं..
इसे पढ़ कर सुब्हान'अल्लाह कहना बहुत आसान है लेकिन इस रास्ते पर चलना बहुत मुश्किल है मेरे भाइयों...
जो लोग यह कहते हैं कि इस दौर में शरीअत पर चलना बहुत मुश्किल है वो लोग हज़रत बिलाल और बाक़ी सहाबा की क़ुर्बानियों को देखें और फैसला करें कि आज दीन पर चलना मुश्किल है या उस दौर में मुश्किल था, हम तो सारी सहूलतें मिलने के बाद भी मस्जिद जाने की तकलीफ़ नहीं उठा सकते तो जन्नत में जाने की उम्मीद कैसे लगा सकते हैं...
सहाबा इकराम को देखो कि वो कितनी मुश्किलों से गुज़रे हैं, उनके रास्ते में जंग-ए-बदर भी है, जंग-ए-ओहद भी है, जंग-ए-हुनैन भी है और जंग-ए-कर्बला भी है.. तब जा कर जन्नत मिली और हम सोचते हैं बस मुँह उठा कर चले जायेंगे जन्नत में..
आज हम इकठ्ठे हो कर किसी दीनी महफ़िल में नारा लगा कर समझते हैं कि हमने दीन का हक़ अदा कर दिया...?
नहीं मेरे भाइयों.. हमें समझने की ज़रूरत है कि दीन हमसे क्या मुतालबा कर रहा है...
नमाज़ जो कि अल्लाह को इबादतों में सबसे ज़्यादा पसंदीदा है इसको ही ले लो
हुज़ूर पाक मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि:
"मेरी आँखों की ठंडक नमाज़ है"
सहाबा फ़रमाते हैं कि:
"हम मोमिन और काफ़िर के बीच फ़र्क़ ही नमाज़ से समझते थे, जो नमाज़ नहीं पढ़ता था हम समझते थे कि मोमिन नहीं है तभी नमाज़ नहीं पढ़ता, मोमिन होता तो ज़रूर पढ़ता"
इमाम-ए-आज़म का फ़तवा है कि:
"जो नमाज़ न पढ़े उसे क़ैद कर दो, अगर तौबा करता है और नमाज़ पढ़ना शुरू कर देता है तो छोड़ दो"
शेख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी(ग़ौस-ए-आज़म) रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं कि:
"बे-नमाज़ी को मुसलमानों के क़ब्रिस्तान में दफ़न न करो"
हज़रत सुल्तान-ए-बाहू फ़रमाते हैं कि:
"बे-नमाज़ी से खंज़ीर(सूअर) भी पनाह मांगता है"
हज़रत शेख़ सादी ने फ़रमाया कि:
बे-नमाज़ी को क़र्ज़ मत दो क्योंकि जो अल्लाह का क़र्ज़(नमाज़) अदा नहीं करता वह तुम्हारा क़र्ज़ क्या अदा करेगा"
रसूल पाक के चाहने वाले,
इमाम-ए-आज़म के मानने वाले,
ग़ौस-ए-आज़म की ग्यारहवीं की नियाज़ करने वाले ज़रा अपने दिलों में झांकें कि क्या वह अल्लाह और रसूल का हक़ अदा कर रहे हैं और नमाज़ तो ऐसी इबादत है कि अगर सच्चे दिल से इसे थाम लिया तो नमाज़ बाक़ी गुनाहों से भी बचा ले जायेगी और दीगर नेकियों की तरफ़ भी मुतवज्जो करेगी और क़ब्र में भी साथ देगी और रोज़-ए-महशर में भी..
इसलिए मेरे भाइयों नमाज़ क़ायम करो ताकि जब हम अपने रब के पास हाज़िर हों तो मुँह दिखाने लायक़ तो हों...
अल्लाह हम सबको नमाज़ पढ़ने और दीगर नेक आमाल करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाये...
नोट:-
इस मैसेज को बे-नमाज़ियों को तो सेंड करो ही साथ ही नमाज़ियों को भी सेंड करो ताकि उनकी फ्रेंड लिस्ट में जो बे-नमाज़ी हों उन तक भी यह मैसेज पहुँच जाये
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