Wednesday, June 8, 2016

आदमी के नीचे से सरकती ज़मीन :

💤आदमी के नीचे से सरकती ज़मीन💤
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कोई भी 'ताकत' माजी और मुस्तकबिल के बीच पुल के रूप में होना चाहिए जिससे कि मुल्क और समाज की तकदीर बने.अधिकार के साथ दायित्व का होना बेहद जरूरी होता है अन्यथा यह अधिकार 'शक्ति' के रूप खतरनाक बन जाता है. प्रिंट याइलेक्ट्रानिक मीडिया में संपादकीय टीम हर लेख के प्रति जिम्मेदार होती है, लेकिन सोशल मीडिया में दायित्व का बोध कम ही दिख रहा है. कल रात को मेरी बुआ की लड़की घबराई हुई पूछ रही थी कि क्या चांद उल्टा है? मैंने सोचा मजाक कर रही है,अभी मैं डांटता उससे पहले ही बोल पड़ी, "जरा न्यूज़ में पता करिए कि कब-कब भूकंप आने वाला है? व्हाट्सएप पर कई तरह की बातें बताई जा रही हैं. हम लोग करीब दो रातों से बाहर सो रहे हैं, ये कितने दिन तक चलेगा?" और ढ़ेर सारी अफवाहों वाली बातें. इसके बाद तमाम अफवाहों के मैसेज मैंने व्हाट्सएप पर देखें, कुछ देर के लिए मैं खुद सहम गया. नेपाल में भूकंप से तबाही का सिलसिला बरकरार है. भूकंप अभी भी नेपाल, बिहार, यूपी, पश्चिम बंगाल और दिल्ली को डरा रहा है. भूंकप आने के कुछ घंटे बाद से ही व्हाट्सएप पर अफवाहें फैलने लगी थी कि भूंकप फिर कब और कितने बजे आने वाला है? व्हाट्सएप समेत सोशल मीडिया के इस चेहरे में वो घटनाएं हैं जो हैरान कर देती हैं, सोचने पर मजबूर कर देती हैं. साइबर अफवाहबाजी की खतरनाक समस्या भी दिखती है. खास बात ये है कि साइबर अफवाह का शिकार कोई एक शख्स नहीं बल्कि समाज और देश भी बनते हैं. पिछले कुछ सालों में सोशल मीडिया का तेजी से विस्तार हुआ है और कम वक्त में ही ये राजनीति और देश की दशा और दिशा को प्रभावित करने की हैसियत पर पहुंच गया है.
--------बाकी बातें कल------
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